आज फिर मेरा मन उदास हुआ
आज फिर मेरा दिल बेबस हुआ
मोहब्बत में तकलीफें ही मिलीं
ये तकलीफें ही तेरा तोहफा हुआ
खून के आंसू बहा रहा हूँ मैं
आज फिर दिल मेरा घायल हुआ
आंसू भी कितने बेजार हैं मेरी तरह
इन्हें कोई पोछने वाला न हुआ
जाने क्यूँ मैं उम्मीद कर लेता हूँ
आज फिर उम्मीदों का क़त्ल हुआ
मेरा हो के मेरा ही रह सके कोई
मैं तो इस काबिल भी न हुआ
तूने दुत्कारा है मुझे कुत्ते की मानिंद
आज तकलीफों का कारवां शुरू हुआ
मैं सब जान के भी तुझसे जुडा हुआ हूँ
तू आज दिखा मुझे उखड़ा-उखड़ा हुआ
तेरे होंगे कई चाहने वाले इस दुनिया में
मैं तुझसे बिछुड़ के आज अकेला हुआ
मैं आज अपने दिल की क्या कहूँ
मेरे दर्द का तो आज इंतिहा हुआ
बेईज्ज़ती के बाद भी तुझसे मिलूँगा
ये तो मेरी मोहब्बत का इम्तहाँ हुआ
दर-ओ-दीवार ही खड़ी की थी मैंने
मेरा आशियाना जल के खाक हुआ
सब कुछ ख़ाली-ख़ाली सा लगता है
बहार में ही खिजां का मौसम हुआ
आज फिर मेरा मन उदास हुआ
आज फिर मेरा दिल बेबस हुआ
--- संजय स्वरुप श्रीवास्तव
" बेईज्ज़ती के बाद भी तुझसे मिलूँगा
जवाब देंहटाएंये तो मेरी मोहब्बत का इम्तहाँ हुआ "
-------- beizzati ke baad bhi mohabbat karte rahna kitna dukhad hai...bahut achchi ghazal sanjay ji