दूरियाँ बढ़ चली हैं तेरे मेरे बीच में
तड़प रहा मेरा तन-मन तेरे विरह में
पास आने को तेरे मेरा जी चाहता है
दूरियाँ मिटा दूंगा मैं अबकी सावन में
कितनी प्यारी है तू पाँव से सर तलक
चूम डालूँगा तुझको मैं इस मिलन में
मना करती है तू मुझको शराब पीने से
शराबी बना हूँ तेरी आँखों के मयखाने में
तेरी मुस्कुराहटें चलाती हैं तीरें इतनी
कैसे बचाऊं दिल तेरी जादूनगरी में
तड़प रहा मेरा तन-मन तेरे विरह में
दूरियाँ बढ़ चली हैं तेरे मेरे बीच में
--- संजय स्वरुप श्रीवास्तव
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