रविवार, 13 फ़रवरी 2011

चितवन

कुसुम-पल्लव सी तेरी चितवन   
आच्छादित है मेरा ह्रदय-उपवन 

मलय-पवन  सी  तेरी देह सुगंध
सुवासित है मेरा तन-मन-चमन 

स्मृति के झरोखों से निहारती आँखें ये 
समाहित  हैं  अमर-प्रेम  के  पल  छिन   

भावनाओं  की  मदमस्त  आँधियों  में   
झूमता है प्रेमातुर वल्लरी सा तृषित मन 

आच्छादित है मेरा ह्रदय-उपवन 
कुसुम-पल्लव सी तेरी चितवन 
                             --- संजय स्वरुप श्रीवास्तव      

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