कुसुम-पल्लव सी तेरी चितवन
आच्छादित है मेरा ह्रदय-उपवन
मलय-पवन सी तेरी देह सुगंध
सुवासित है मेरा तन-मन-चमन
स्मृति के झरोखों से निहारती आँखें ये
समाहित हैं अमर-प्रेम के पल छिन
भावनाओं की मदमस्त आँधियों में
झूमता है प्रेमातुर वल्लरी सा तृषित मन
आच्छादित है मेरा ह्रदय-उपवन
कुसुम-पल्लव सी तेरी चितवन
--- संजय स्वरुप श्रीवास्तव
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