मंगलवार, 1 फ़रवरी 2011

जुदा

आज  तू  मेरी ज़िन्दगी से जुदा हो गयी        
यूँ मेरी ज़िन्दगी ही मुझसे जुदा हो गयी

           रेतीले ख़्वाबों के बेशुमार महल बनाए थे मैंने
           गुम हो गए वजूद मुझसे क्या खता हो गयी
           
           मैं हूँ तेरी तूने ही तो एक दिन कहा था मुझसे
           तेरे उस अल्फाज़ का वजूद कहाँ गुम हो गयी

           चार दिनों में मुझ बीमार का हाल भी न पूछा 
           वो बातों-बातों में फिक्रमंदी तेरी कहाँ खो गयी


           तेरे जाने के बाद तुझे आइना-ए-दिल में देखना चाहा
           अक्श  नज़र ही न आये  तू  दिल भी खाली कर गयी 
        
           तुझ पे ग़ज़ल अब लिखा ही नहीं जाएगा
           अब तू  ग़ज़लों के  काबिल कहाँ रह गयी


यूँ  मेरी ज़िन्दगी ही मुझसे जुदा हो गयी
आज  तू  मेरी ज़िन्दगी से जुदा हो गयी 
                                            --- संजय स्वरुप श्रीवास्तव      

1 टिप्पणी: