यूँ ही इक-इक कर सारे सितारे गुल हो जायेंगे
दिल की हसरतें दिल ही में दफ़न हो जायेंगे
वो भी क्या दिन थे साया-ए-हुश्न में गुज़रते थे
किसे पता था एक दिन दीदार को तरस जायेंगे
मैं खुद की खता पे शर्मिंदा हूँ ऐ मेरी ज़िन्दगी
खता बख्श दो वरना तेरे बगैर मर जायेंगे
ज़िन्दगी ये कैसी ज़िन्दगी जिसमें तेरा शुमार नहीं
आओ चले भी आओ तेरी राहों में दिल बिछायेंगे
शिद्दत से महसूस हो रही है तुम्हारी ज़रूरत
इक बार मुस्कुरा दो हम खुश हो जायेंगे
दिल की हसरतें दिल ही में दफ़न हो जायेंगे
यूँ ही इक-इक कर सारे सितारे गुल हो जायेंगे
--- संजय स्वरुप श्रीवास्तव
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