अब तो मर जाने को जी चाहता है
ये दिल जला देने को जी चाहता है
क्या यही हैं ज़िन्दगी के जलवे
ज़िन्दगी ज़ला देने को जी चाहता है
उफ़ इतनी बेरुखी कैसे सहूँ मैं
खुद को जला देने को जी चाहता है
वो क्यूँ खफा हो गया या अल्लाह
पागल हो जाने को जी चाहता है
क्यूँ शुरू किया सोचना उसके बारे में
सोचों को जलाने को जी चाहता है
नाकाबिल-ए-बर्दास्त दर्द है मेरे दिल में आज
उसकी तसव्वुर में मरने को जी चाहता है
मैं ही उसके प्यार के काबिल नहीं शायद
अपने प्यार को आग लगाने को जी चाहता है
ना सहनी पड़े अब और बेरुखी उसकी
इसी पल मर जाने को जी चाहता है
मेरी तमाम परेशानियों का सबब है दिल
इसे निकाल फेंकने को जी चाहता है
यारों वो भी संगदिल ही निकला
अपनी किस्मत पे रोने को जी चाहता है
अंगारे भर गए आज तन-मन में मेरे
इन ग़ज़लों को ज़लाने को जी चाहता है
--- संजय स्वरुप श्रीवास्तव
ये दिल जला देने को जी चाहता है
क्या यही हैं ज़िन्दगी के जलवे
ज़िन्दगी ज़ला देने को जी चाहता है
उफ़ इतनी बेरुखी कैसे सहूँ मैं
खुद को जला देने को जी चाहता है
वो क्यूँ खफा हो गया या अल्लाह
पागल हो जाने को जी चाहता है
क्यूँ शुरू किया सोचना उसके बारे में
सोचों को जलाने को जी चाहता है
नाकाबिल-ए-बर्दास्त दर्द है मेरे दिल में आज
उसकी तसव्वुर में मरने को जी चाहता है
मैं ही उसके प्यार के काबिल नहीं शायद
अपने प्यार को आग लगाने को जी चाहता है
ना सहनी पड़े अब और बेरुखी उसकी
इसी पल मर जाने को जी चाहता है
मेरी तमाम परेशानियों का सबब है दिल
इसे निकाल फेंकने को जी चाहता है
यारों वो भी संगदिल ही निकला
अपनी किस्मत पे रोने को जी चाहता है
अंगारे भर गए आज तन-मन में मेरे
इन ग़ज़लों को ज़लाने को जी चाहता है
--- संजय स्वरुप श्रीवास्तव
sanjay ji .... itna dard kisne de diya..... bahut dardeela ghazal likha hai aapne .... bahut khoob.... Bhagwan kisi premi ko aisa dard naa de
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