मंगलवार, 16 अक्तूबर 2012

** बदलाव **

इस कदर बदल सकता है कोई सोचा न था
बेहयाई बेवफाई का ऐसा मंज़र देखा न था!
                वो  जो बेचैन रहते थे दीवानों की मानिंद
                बदल जायेंगे मौसम की तरह सोचा न था!
पाक़ मोहब्बत की देने वाले दुहाई 
बदनाम कर जायेंगे इश्क को सोचा न था!
                इक़-ब-इक बदल चुका है सब कुछ
                ये दिन भी आएगा सोचा न था!
दिल से चाहने की सजा होगी ऐसी
ऐ खुदा मेरे लिए तो ये दोजख न था!

               बेहयाई बेवफाई का ऐसा मंज़र देखा न था,
               इस कदर बदल सकता है कोई सोचा न था!!
                                                  --- संजय स्वरुप श्रीवास्तव