मंगलवार, 20 दिसंबर 2011

आंसू हो गई ज़िन्दगी

क्या सोचा और क्या हो गई ज़िन्दगी
मुस्कान से टपका आँसू हो गई ज़िन्दगी

नींद भरी है आँखों में पर नींद नहीं आती
कडुवाहट भरी नींद हो गई ज़िन्दगी


कहते हैं गुज़रा वक़्त नहीं लौटता कभी
काश फिर शुरू कर पाता गई ज़िन्दगी


पास हो के मेरी नहीं है वो
आह कितना छल गई ज़िन्दगी


सब कुछ लगता है पराया-पराया सा
जो नहीं चाहा था वो हो गई ज़िन्दगी


सज़ावार हूँ गुनाहगार हूँ तेरा मैं
बक्श दे मुझे तनहा ऐ ज़िन्दगी


गुज़रा हुआ कल ख्वाब लगता है इक
सोचता हूँ हाथ बढ़ा छू लूँ तुझे ज़िन्दगी


चैन की नींद सो रहा है वो मेरे बाजू में
इक मैं ही तुझे सोच रहा हूँ ज़िन्दगी 

मुस्कान से टपका आँसू हो गई ज़िन्दगी
क्या सोचा और क्या हो गई ज़िन्दगी
                             --- संजय स्वरुप श्रीवास्तव 

सोमवार, 19 दिसंबर 2011

क्या से क्या

ज़िन्दगी क्या से क्या हो गई है
ये तो उसकी तरह बेवफा हो गई है

सोचा था फूलों की तरह महकेगी ज़िन्दगी
ये क्या हुआ ये तो इक जेलखाना हो गई है

हर तरफ उदासियों औ' सन्नाटे का आलम है
ज़िन्दगी कितनी बदमज़ा हो गई है

अपनी करतूतों की सजा भुगत रहा हूँ
ज़िन्दगी तो अब ज़हन्नुम हो  गई है

वो आज मेरे पहलू में मौजूद है मगर 
हमारे दरमियाँ  कितनी दूरियाँ हो गई हैं

अबसे पहले तो ऐसा कभी न हुआ था
हमारी ख़ामोशी कितनी लम्बी हो गई है

ये तो उसकी तरह बेवफा हो गई है
ज़िन्दगी क्या से क्या हो गई है
                     --- संजय स्वरुप श्रीवास्तव






शनिवार, 10 दिसंबर 2011

दिल में ज़ज्ब

हर गम को दिल में ज़ज्ब करता चला गया
उसकी खातिर खुद को मारता चला गया

बेवफाई कर के उसका दावा इश्क है मुझी से
इस फरेब पर भी यकीन करता चला गया


किससे कहूँ अपनी बातें हल्का करूँ दुःख कैसे 
अपनी गजलों को हमराज़ बनाता चला गया


कितनी आरजुएँ कितनी उमंगें थी दिल में
उसकी बेवफाई में सब डूबता चला गया


मेरे ही दिल की टूटी किरचें पड़ी हैं राहों में
इनसे बचने की कोशिशें करता चला गया


उसने मुझे नहीं किसी और को चाहा किया
अपने आहत मन को सहलाता चला गया 

उसकी खातिर खुद को मारता चला गया
हर गम को दिल में ज़ज्ब करता चला गया
                                  --- संजय स्वरुप श्रीवास्तव