तू अब भी मेरे ख्यालों में चली आती है
तू अब भी मेरे ख्वाबों में चली आती है
तुझसे बिछुड़ के भी सुकून हासिल न हुआ
तब तू सताती थी अब तेरी याद सताती है
इसी शहर की बाशिंदा तू भी है मैं भी हूँ
फिर भी नज़र तेरी दीदार को तरसती है
सुना है तू और भी हसीं दिलकश हो गई है
तुझे आगोश में लेने को बाहें मेरी तरसती हैं
वो वादे वो प्यार की बातें मुझे याद हैं
तन्हाई रोज़ मुझे तेरी बज़्म में लाती है
हाथों में तेरा चेहरा हुआ करता था
अब तू गैरों के लिए मुस्कुराती है
वो मुझे देखने के लिए ख़त लिखना तेरा
अब देखते ही तू नज़रें चुराया करती है
तू अब भी मेरे ख्वाबों में चली आती है
तू अब भी मेरे ख्यालों में चली आती है
--- संजय स्वरुप श्रीवास्तव
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