शनिवार, 12 फ़रवरी 2011

इंतज़ार

हर रोज़ तेरी खतों का इंतज़ार करता हूँ मैं 
दिन रात तेरी ख्यालों में खोया रहता हूँ मैं   


हुश्न वाले तेरा बसेरा कहाँ है बता तो ज़रा
गलियों-गलियों तुझे ही ढूँढता रहता हूँ मैं


खता तो बता खफा है क्यूँ मेरी जानेवफ़ा
सियाह रातों में अश्क बहाया करता हूँ मैं


तू खुद मौजूद है ख़त की तहरीरों में 
सोच कर ख़त चूम लिया करता हूँ मैं 


रब जाने तू किसकी इबादत करती है 
तेरी  ही  इबादत  किया  करता  हूँ मैं 


दिन रात तेरी ख्यालों में खोया रहता हूँ मैं    
हर रोज़ तेरी खतों का इंतज़ार करता हूँ मैं 
                                     --- संजय स्वरुप श्रीवास्तव 

   

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