जब तुम मेरा दिल दुखाती हो तो ग़ज़ल लिखता हूँ
जब तुम मुझे इश्क करती हो तो ग़ज़ल लिखता हूँ
चाँदनी रातों की मदमस्त फिज़ाओं में मेरे पास
जब तुम कहीं नहीं होती हो तो ग़ज़ल लिखता हूँ
कंपकंपाती सर्दियों की ठिठुरती रातों में जब
बदन तेरा नहीं होता बाँहों में तो ग़ज़ल लिखता हूँ
कितना इन्तज़ार करूँ कब तक इन्तज़ार करूँ तेरा
जब तुम वादा नहीं निभाती हो तो ग़ज़ल लिखता हूँ
मेरी रातें गमक उठती हैं तेरी ख़ुशबू-ए-बदन से
ख़्वाब में तुम जब आती हो तो ग़ज़ल लिखता हूँ
कितनी लज्ज़त कितनी बेखुदी है तेरी यादों में
तुम याद जब मुझे आती हो तो ग़ज़ल लिखता हूँ
जब तुम मुझे इश्क करती हो तो ग़ज़ल लिखता हूँ
जब तुम मेरा दिल दुखाती हो तो ग़ज़ल लिखता हूँ
--- संजय स्वरुप श्रीवास्तव