सोमवार, 28 फ़रवरी 2011

ग़ज़ल लिखता हूँ

जब तुम मेरा दिल दुखाती हो तो ग़ज़ल लिखता हूँ     
जब तुम मुझे इश्क करती हो तो ग़ज़ल लिखता हूँ    

                चाँदनी रातों की मदमस्त फिज़ाओं  में मेरे पास
                जब तुम कहीं नहीं होती हो तो ग़ज़ल लिखता हूँ    

कंपकंपाती  सर्दियों  की  ठिठुरती  रातों  में  जब
बदन तेरा नहीं होता बाँहों में तो ग़ज़ल लिखता हूँ   

                कितना  इन्तज़ार करूँ कब तक इन्तज़ार करूँ तेरा
                जब तुम वादा नहीं निभाती हो तो ग़ज़ल लिखता हूँ   

मेरी रातें गमक उठती हैं  तेरी ख़ुशबू-ए-बदन से 
ख़्वाब में तुम जब आती हो तो ग़ज़ल लिखता हूँ   

                 कितनी लज्ज़त कितनी  बेखुदी  है  तेरी यादों में    
                 तुम याद जब मुझे आती हो तो ग़ज़ल लिखता हूँ   

जब तुम मुझे इश्क करती हो तो ग़ज़ल लिखता हूँ  
जब तुम मेरा दिल दुखाती हो तो ग़ज़ल लिखता हूँ    
                                                     --- संजय स्वरुप श्रीवास्तव    

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