रविवार, 20 फ़रवरी 2011

इस शहर में

ढूँढ़ते क्या हो राही इस शहर में  
हर कोई बेवफा है इस शहर में   
                
            एक  हरजाई   हो  तुम   ऐ  सनम
            यही है मुकाम तिरा मिरे नज़र में

            सिरायें दिल की फटने ही वाली हैं
            सुबह से शाम हो चली इंतज़ार में

            तेरी  ज़ुर्रत   पे  हैराँ  हो  रहा  हूँ  मैं
            जाने क्या-क्या सहने पड़ेंगे प्यार में

           जैसा चाहती  है  तू  हो रहा है वैसा   
           मैं लाचार हो चला हूँ तिरे प्यार में 

हर कोई बेवफा है इस शहर में 
ढूँढ़ते क्या हो राही इस शहर में    
                            --- संजय स्वरुप श्रीवास्तव    


1 टिप्पणी:

  1. ढूँढ़ते क्या हो राही इस शहर में
    हर कोई बेवफा है इस शहर में

    sach me har koi bewafaa hai is jahan mein....

    जवाब देंहटाएं