इतना चाहा है मैंने तुझको
और कितना चाहूँ मैं तुझको
अंग-अंग में समाया है प्यास मेरे
जी चाहता है प्यार करूँ तुझको
बहुत धोखे मिले हैं ज़िन्दगी में
दिल नहीं चाहता दिल दूँ तुझको
दिल नहीं भरता तुझको देख कर
जी चाहता है देखता ही रहूँ तुझको
जाने कहाँ ग़ुम हो गया वजूद तेरा
तसव्वुर में ढूँढ़ता रहता हूँ तुझको
आँसुओं में भर रखा है टब मैंने
आ दिलबर इसमें नहलाऊ तुझको
और कितना चाहूँ मैं तुझको
इतना चाहा है मैंने तुझको
--- संजय स्वरुप श्रीवास्तव
"आँसुओं में भर रखा है टब मैंने
जवाब देंहटाएंआ दिलबर इसमें नहलाऊ तुझको"
sanjay ji...aansu se bhare tab me premika ko nahlane k i aap ki soch nirali hai...