मेरे ख्यालों में तुम आने लगी हो
मेरे ख्वाबों को तुम सजाने लगी हो
कितनी वीरान हो चुकी थी ज़िन्दगी मेरी
तुम बहार बन के ज़िन्दगी पे छाने लगी हो
हर तरफ मेरे उदासियाँ बिखरी पड़ी थीं
आ के तुम मुस्कुराहटें बिखेरने लगी हो
सूखा पत्ता समझ बैठा था मैं खुद को
जाने कैसे तुम मुझे चाहने लगी हो
खुदा के घर देर है अंधेर नहीं
तुम इसका अहसास करने लगी हो
मेरा तन मन तड़प रहा था तेरी खातिर
तुम मेरे दिल को आबाद करने लगी हो
कितनी आरजुएं हसरतें हैं मेरे मन में
तुम इन्हें हकीकत में बदलने लगी हो
कितनी फीकी हो चली थीं मेरी ग़ज़लें
तुम मेरी गजलों को सँवारने लगी हो
मेरे ख्वाबों को तुम सजाने लगी हो
मेरे ख्यालों में तुम आने लगी हो
--- संजय स्वरुप श्रीवास्तव
मेरे ख्वाबों को तुम सजाने लगी हो
कितनी वीरान हो चुकी थी ज़िन्दगी मेरी
तुम बहार बन के ज़िन्दगी पे छाने लगी हो
हर तरफ मेरे उदासियाँ बिखरी पड़ी थीं
आ के तुम मुस्कुराहटें बिखेरने लगी हो
सूखा पत्ता समझ बैठा था मैं खुद को
जाने कैसे तुम मुझे चाहने लगी हो
खुदा के घर देर है अंधेर नहीं
तुम इसका अहसास करने लगी हो
मेरा तन मन तड़प रहा था तेरी खातिर
तुम मेरे दिल को आबाद करने लगी हो
कितनी आरजुएं हसरतें हैं मेरे मन में
तुम इन्हें हकीकत में बदलने लगी हो
कितनी फीकी हो चली थीं मेरी ग़ज़लें
तुम मेरी गजलों को सँवारने लगी हो
मेरे ख्वाबों को तुम सजाने लगी हो
मेरे ख्यालों में तुम आने लगी हो
--- संजय स्वरुप श्रीवास्तव
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