मंगलवार, 15 फ़रवरी 2011

तेरा आना

मेरे  ख्यालों  में  तुम आने  लगी हो     
मेरे ख्वाबों को तुम सजाने लगी हो    


कितनी  वीरान  हो  चुकी थी ज़िन्दगी मेरी
तुम बहार बन के ज़िन्दगी पे छाने लगी हो


हर तरफ मेरे उदासियाँ बिखरी पड़ी थीं
आ के तुम मुस्कुराहटें बिखेरने लगी हो 


सूखा पत्ता समझ बैठा था मैं खुद को
जाने कैसे  तुम  मुझे चाहने लगी हो


खुदा  के  घर  देर  है  अंधेर  नहीं
तुम इसका अहसास करने लगी हो


मेरा तन मन तड़प रहा था तेरी खातिर
तुम मेरे दिल को आबाद करने लगी हो


कितनी आरजुएं हसरतें हैं मेरे मन में
तुम इन्हें हकीकत में बदलने लगी हो


कितनी फीकी हो चली थीं मेरी ग़ज़लें
तुम मेरी गजलों को सँवारने लगी हो 


मेरे ख्वाबों को तुम सजाने लगी हो 
मेरे  ख्यालों  में  तुम आने  लगी हो  
                                     --- संजय स्वरुप श्रीवास्तव



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