रविवार, 20 फ़रवरी 2011

मन की बातें

आज मन मन की बातें कह रहा है   
मन  का दर्द सुन मन कराह रहा है    

कितने  दर्द  ज़ज्ब  करूँ  मैं   इस मन में   
ग़ज़ल लिखने को मन मजबूर हो रहा है

बमुश्किल मिलता है इक हमसफ़र पसंदीदा
तलाश में हमसफ़र की पूरी ज़वानी गुज़रा है  

मिल जाये मोहब्बत शायद कहीं मेरे लिए
किताब-ए-दिल  तेरा मन  मेरा पढ़ रहा है   

प्यार  की  एक  बूँद टपक पड़ेगी सोच कर
मन तुझे चकोर की मानिंद तकता रहा है 

कितनों के इन्तज़ार किये हैं कितने मैंने 
तेरे भी इन्तज़ार  को मन बेबस हो रहा है

पागल कर रखा है तेरी हरकतों ने मुझे
तुझसे  अभिसार  को  मन तड़प रहा है

नाते-रिश्ते हैं बनते-बिगड़ते कितनी ज़ल्दी  
तमाम  उम्र मेरी  यही समझने में गुज़रा है  

मन  का दर्द सुन मन कराह रहा है    
आज मन मन की बातें कह रहा है  
                                  --- संजय स्वरुप श्रीवास्तव    

1 टिप्पणी:

  1. नाते-रिश्ते हैं बनते-बिगड़ते कितनी ज़ल्दी
    तमाम उम्र मेरी यही समझने में गुज़रा है

    shandaar.... bahut achchha samjha rishte ko aur likha bhi....

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