कितने दर्द ज़ज्ब करूँ मैं इस मन में
ग़ज़ल लिखने को मन मजबूर हो रहा है
बमुश्किल मिलता है इक हमसफ़र पसंदीदा
तलाश में हमसफ़र की पूरी ज़वानी गुज़रा है
मिल जाये मोहब्बत शायद कहीं मेरे लिए
किताब-ए-दिल तेरा मन मेरा पढ़ रहा है
प्यार की एक बूँद टपक पड़ेगी सोच कर
मन तुझे चकोर की मानिंद तकता रहा है
कितनों के इन्तज़ार किये हैं कितने मैंने
तेरे भी इन्तज़ार को मन बेबस हो रहा है
पागल कर रखा है तेरी हरकतों ने मुझे
तुझसे अभिसार को मन तड़प रहा है
नाते-रिश्ते हैं बनते-बिगड़ते कितनी ज़ल्दी
तमाम उम्र मेरी यही समझने में गुज़रा है
मन का दर्द सुन मन कराह रहा है
आज मन मन की बातें कह रहा है
--- संजय स्वरुप श्रीवास्तव
ग़ज़ल लिखने को मन मजबूर हो रहा है
बमुश्किल मिलता है इक हमसफ़र पसंदीदा
तलाश में हमसफ़र की पूरी ज़वानी गुज़रा है
मिल जाये मोहब्बत शायद कहीं मेरे लिए
किताब-ए-दिल तेरा मन मेरा पढ़ रहा है
प्यार की एक बूँद टपक पड़ेगी सोच कर
मन तुझे चकोर की मानिंद तकता रहा है
कितनों के इन्तज़ार किये हैं कितने मैंने
तेरे भी इन्तज़ार को मन बेबस हो रहा है
पागल कर रखा है तेरी हरकतों ने मुझे
तुझसे अभिसार को मन तड़प रहा है
नाते-रिश्ते हैं बनते-बिगड़ते कितनी ज़ल्दी
तमाम उम्र मेरी यही समझने में गुज़रा है
मन का दर्द सुन मन कराह रहा है
आज मन मन की बातें कह रहा है
--- संजय स्वरुप श्रीवास्तव
नाते-रिश्ते हैं बनते-बिगड़ते कितनी ज़ल्दी
जवाब देंहटाएंतमाम उम्र मेरी यही समझने में गुज़रा है
shandaar.... bahut achchha samjha rishte ko aur likha bhi....