रविवार, 13 फ़रवरी 2011

बेआबरू

हर दफा बेआबरू  हो निकले तेरे कूचे से हम    
फिर भी तमन्नाएँ लिए पहुंचे तेरे कूचे में हम 


जहाँ में एक ऐसा भी काम हुआ  
तेरे ही जैसा शख्स ढूँढते रहे हम  


कैसे कटेगी ये लम्बी वीरान रातें 
एक जिंदा लाश के पास जाते रहे हम


दिल जल-जल जाता है उस मतलबी यार से
उसी यार के पास दिल लिए घूमते रहे हम 


यारों ढूंढ रहा हूँ खूबी अपने में कोई एक
जिसके  बूते  प्यार  उसका  पाते रहे हम         


क्या उसके दिल में भी प्यार है मेरे लिए
अब तो सुबहोशाम यही सोचा किये हम 


तू  पास  हो  या  हो  दूर  मेरे सनम  
खुद को तनहा ही महसूस किये हम 


इक  इल्तज़ा  है  तुझसे  ऐ ज़माने वाले
दे दे उसे जिसकी तमन्ना करते रहे हम


हर  कोई  ले  जाता है  प्यार देने के बगैर
तुम खुद सोच लो कितने बदनसीब हैं हम 


फिर भी तमन्नाएँ लिए पहुंचे तेरे कूचे में हम 
हर दफा बेआबरू  हो निकले तेरे कूचे से हम  
                                    --- संजय स्वरुप श्रीवास्तव 

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