आँखों को प्रिय
चेहरे
अनजाने हो जाते हैं
बेक़रार रहते हैं
जिनके लिए
सामने से निकल जाते हैं
पर देखते नहीं उन्हीं को
कुछ और नहीं सोचते थे
जिसके अतिरिक्त
अब तो सब कुछ सोचते हैं
उसके अतिरिक्त
सारी दुनिया में सबसे प्रिय था
जो चेहरा
सारी दुनियां में सबसे घृणित है
वही चेहरा
छन भर भी परेशां ना देख सकते थे
जिस शख्स को
परेशानियों के भँवर में डाल दिया
उसी शख्स को
आखिर क्यों
बदल जाया करता है
मनुष्य का
प्रेम औ' अपनापन ??
--- संजय स्वरुप श्रीवास्तव
चेहरे
अनजाने हो जाते हैं
बेक़रार रहते हैं
जिनके लिए
सामने से निकल जाते हैं
पर देखते नहीं उन्हीं को
कुछ और नहीं सोचते थे
जिसके अतिरिक्त
अब तो सब कुछ सोचते हैं
उसके अतिरिक्त
सारी दुनिया में सबसे प्रिय था
जो चेहरा
सारी दुनियां में सबसे घृणित है
वही चेहरा
छन भर भी परेशां ना देख सकते थे
जिस शख्स को
परेशानियों के भँवर में डाल दिया
उसी शख्स को
आखिर क्यों
बदल जाया करता है
मनुष्य का
प्रेम औ' अपनापन ??
--- संजय स्वरुप श्रीवास्तव
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