मंगलवार, 15 फ़रवरी 2011

ढूँढ़ता रहा

ढूँढ़ता रहा उन्हें जो जाने  कहाँ खो गए हैं    
चाहता  रहा उन्हें  जो  बेगाने  हो  गए हैं      
                      भीगी पलकों से जाते देखते रहे उनको
                      जो फिर ना आने की कसमें खा गए हैं
क्या  बताऊँ  उसकी  इनायतों के बारे में 
वो तो तमाम उम्र के लिए दर्द दिए गए हैं
                      क्या-क्या मिला मुझे उनकी सोहबत से
                      वो तो  मेरी  तमाम  चीज़ें  लेते  गए  हैं
सोचा मँझधार से निकल किनारा पाऊंगा     
वो तो रुसवाइयों के  भँवर में छोड़ गए हैं
                      बेवफाई  है क्या  चीज़ मुझे ना थी मालूम
                      वो मुझे बेवफाई का मतलब बतला गए हैं
वो भी क्या दिन थे नूर था मैं उनकी आँखों का
वो  खुशनुमां  पल  जाने  कहाँ  गुम  हो गए हैं
                      वो चाहते हैं मुझे इस मुगालते में रहा मैं
                      वो  तो  जाने  कब  बेवफाई  कर  गए हैं
चाहता  रहा  उन्हें  जो  बेगाने  हो  गए हैं       
ढूँढ़ता रहा उन्हें जो जाने  कहाँ खो गए हैं    
                                    --- संजय स्वरुप श्रीवास्तव  

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