शनिवार, 12 फ़रवरी 2011

कमीना

कमीना  हूँ मैं 
तथ्य ही कहा तुमने 
सत्य ही कहा तुमने
कमीना ना होता तो 
तुम्हें दिल में बसाता ही क्यों
चांदनी रातों को जागता ही क्यों
अब-अब ठंडी छाँव मिलेगी
सोच-सोच कर
तेरी केशों की तपन में जलता ही क्यों
तेरी तपन से ज़िन्दगी झुलसाता ही क्यों
कमीना ना होता तो 
बदनामियों के बोझ काँधे पर उठाता ही क्यों
अपनी आकांक्षाओं को कुचलता ही क्यों
कमीना ही कहा तुमने
सत्य ही कहा तुमने 
                --- संजय स्वरुप श्रीवास्तव 

   

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें