इश्क को मोहब्बत ने पुकारा है प्यार से
चाहत के गुलशन में चली आओ ऐतबार से
इस दिल से उस दिल तलक फैली है खुशबू
जाने क्या हो गया है दोनों को महवेख्वाब से
बेचैनियाँ मुझे लम्हा-लम्हा अहसास कराती हैं
कोई परी चेहरा आ बसी है दिल में आसमां से
बंद की जो आँखें चली आई वो आगोश में
यूँ लगा रजनीगंधा सिमट आई है चमन से
देखो कोपलें फूट पड़ी हैं पतझड़ के मौसम में
सूझा है खुदा को भी कुछ जुदा कल शब् से
बेशुमार बेड़ियों से ज़कड़े हैं हमारे ख्वाब
क्या करूँ कैसे हों पूरे आरजू-ए-दिल शान से
चाहत के गुलशन में चली आओ ऐतबार से
इश्क को मोहब्बत ने पुकारा है प्यार से
--- संजय स्वरुप श्रीवास्तव
dost!!! tumhari sundar rachnayen blog par pad kar achchha laga...khushi ki baat hai ki tum aaj bhi zaandar bane hue ho aur tumhari rachnaon mein taazgi hai...dil ko chhoone kee taaqat hai.
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