शनिवार, 23 अप्रैल 2011

अहमियत

देखो  आज आँखों में आँसू भर चला है 
होके जुदा तेरा अहमियत पता चला है

                    क्यूँ  चले  गए  तुम शहर छोड़
                    तेरे बिन दिल तन्हा हो चला है

                    जुदाई तडपा रही है मुझे इस कदर 
                    नींद जाने कहाँ गुम हो चला है

                    कितना रोका मैंने तुझे जाने से
                    तेरे जाते ही शहर वीरां हो चला है 

                    चली आओ ज़ल्दी करीब मेरे सनम
                    तेरे पीछे घर जल के राख़ हो चला है 

होके जुदा तेरा अहमियत पता चला है  
देखो  आज आँखों में आँसू भर चला है 
                                         --- संजय स्वरुप श्रीवास्तव 

शुक्रवार, 22 अप्रैल 2011

याद में

आपकी बावफा  याद में आँसू बहा लेता हूँ
कुछ न मिले तो खून-ए-आरज़ू पी लेता हूँ

याद  जब आती हैं आप  की  बातें
घबड़ा के दर्द से आँखें भींच लेता हूँ

ये  क्या दे  दिया  बिछुड़ते  हुए  आपने
दर्द-ए-दिल से बचने को मय पी लेता हूँ

सुकून नहीं करार नहीं दिल को कहीं
आपकी खातिर सिर्फ तड़प लेता हूँ

आपके दर से उठ किधर जाऊं बताइए ज़रा
अब  तो खुद ही  को घर में कैद कर लेता हूँ

कुछ न मिले तो खून-ए-आरज़ू पी लेता हूँ
आपकी बावफा  याद में आँसू बहा लेता हूँ
                                           --- संजय स्वरुप श्रीवास्तव