रविवार, 20 फ़रवरी 2011

घरौंदा

तेरी  यादों  के  घरौंदे  में बैठा हूँ     
कैसे कटेगी ज़िन्दगी सोचता हूँ         

नहा  कर  अपनी  आँसुओं  से  मैं
यादों के दर्पण में खुद को देखता हूँ

थका देती  हैं  जब इन्तज़ार की घड़ियाँ 
तेरी तसव्वुर का बिस्तर बिछा लेता हूँ

जब कभी सताती है मुझे दुनिया ये
तिरे  प्यार  का आँचल ओढ़ लेता हूँ

कैसे कटेगी ज़िन्दगी सोचता हूँ  
तेरी  यादों  के  घरौंदे  में बैठा हूँ   
                                    --- संजय स्वरुप श्रीवास्तव    

2 टिप्‍पणियां:

  1. थका देती हैं जब इन्तज़ार की घड़ियाँ
    तेरी तसव्वुर का बिस्तर बिछा लेता हूँ

    waah...waah... subhanallah ... bahut khoob dost..

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