तमाम रात बिस्तर में सिलवटें डालता रहा
नींद में भी तेरी आमद को तरसता रहा
तुझे ना आना था ना ही तू आई हरजाई
बेकार ही अपनी नींदें बर्बाद करता रहा
तुझे ख्वाब में मिलूँगा सोच कर सोया था
ख्वाब में भी दिल के दाग गिनता रहा
कभी आप भी इस हादसे से दो-चार हुए हैं
कि मिल के भी न मिलने का गम होता रहा
नींद में भी तेरी आमद को तरसता रहा
तमाम रात बिस्तर में सिलवटें डालता रहा
-- - संजय स्वरुप श्रीवास्तव
नींद में भी तेरी आमद को तरसता रहा
तुझे ना आना था ना ही तू आई हरजाई
बेकार ही अपनी नींदें बर्बाद करता रहा
तुझे ख्वाब में मिलूँगा सोच कर सोया था
ख्वाब में भी दिल के दाग गिनता रहा
कभी आप भी इस हादसे से दो-चार हुए हैं
कि मिल के भी न मिलने का गम होता रहा
नींद में भी तेरी आमद को तरसता रहा
तमाम रात बिस्तर में सिलवटें डालता रहा
-- - संजय स्वरुप श्रीवास्तव
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