गुरुवार, 10 फ़रवरी 2011

रफ्ता-रफ्ता

रफ्ता-रफ्ता आप के करीब हुए जा रहे हैं हम   
रफ्ता-रफ्ता  खुद  से  दूर  हुए  जा रहे हैं हम  
           बहुत दिनों से सोच रहा हूँ कह दूँ राज-ए-दिल 
           रफ्ता-रफ्ता  हौसला  जुटाए  जा  रहे  हैं हम   
           औरों की तरह तुम बेवफा ना निकलो
           रफ्ता-रफ्ता यही सोचे जा रहे हैं हम   
           मेरी ग़ज़लों में अक्श धुंधली है आपकी
           रफ्ता-रफ्ता इसे संवारते जा रहे हैं हम    
           ज़रा मेरी ग़ज़लों की तरफ तवज्जो तो दीजिये    
           रफ्ता-रफ्ता आपकी तारीफ़ किये जा रहे हैं हम
           दरिया हैं, घाटी हैं या हैं मैखाना आपकी आँखें
           रफ्ता-रफ्ता  आँखों में गुम हुए जा रहे हैं हम   
रफ्ता-रफ्ता  खुद  से  दूर  हुए  जा  रहे हैं हम 
रफ्ता-रफ्ता आप के करीब हुए जा रहे हैं हम
                                           ---- संजय स्वरुप श्रीवास्तव 

1 टिप्पणी: