तू आये ना आये क्या फर्क पड़ता है
तू जब सामने होती है दिल तड़पता है
तिरा प्यार इक छलावा है तिरी तरह
फिर भी दिल तिरे प्यार को मचलता है
चाहतों का वजूद गुम हो गया है जहाँ में
तिरे चाहत को मेरा दिल सिसकता है
किस कदर बेबस है दिल मेरा सोचो तो
उसकी बेरुखी के बावजूद ये धड़कता है
ज़िन्दगी में इक ये भी वाकया हुआ यारों
उस संगदिल की खातिर दिल मेरा रोता है
इक नया ज़हां बसाने को था उसकी खातिर
उसकी गैरमौजूदगी नया गुल खिलाता है
तू जब सामने होती है दिल तड़पता है
तू आये ना आये क्या फर्क पड़ता है
--- संजय स्वरुप श्रीवास्तव
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