सोमवार, 28 फ़रवरी 2011

उफ़

जी चाहता है आज खूब रोऊँ मैं    
गम-ए-अश्कों से आँखें धोउं मैं

खुदाया रहम कर अपने बन्दे पे
उफ़ इतना गम कैसे छुपाऊ  मैं 

कोयले से लिखी तूने तकदीर मेरी 
बता  उसका  प्यार  कैसे  पाऊं  मैं  

जिसे चाहा वो नहीं चाहता मुझे    
आह  कैसे  जिंदा  रहूँगा अब मैं   

कोई  नहीं  करता  मोहब्बत मुझसे 
खुदाया क्या तेरे पास चला आऊं मैं     

गम-ए-अश्कों से आँखें धोउं मैं
जी चाहता है आज खूब रोऊँ मैं 
                           --- संजय स्वरुप श्रीवास्तव   



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