रविवार, 13 फ़रवरी 2011

मेरी सुनहली चिड़िया

ऐ 
मेरी सुनहली चिड़िया !!
तुझे
प्यार करना चाहता हूँ
ख्याली मैं..
जो मेरे मन में बस गई थी
बसी है, बसी रहेगी
तू ही तो है वो
अनगिनत पक्षियाँ हैं
जो चहचहाती रहीं
समय-समय पर
जीवन में मेरे-
पर तेरी आवाज़
गूंजती रहती है
आज भी मेरे कानों में
कदाचित तू मुझे
याद ना करती होगी
जानता हूँ मैं ..
पर तुम्हारी ही स्मृति में
जीवन व्यतीत 
किये  जा रहा हूँ मैं,  
लोगों से कह दिया मैंने
तुझे विस्मृत कर चुका मैं
पर क्या
ऐसा कभी कर सकूँगा मैं ??
दुःख के पल में
सुख के क्षण में
लेता है तेरा ही नाम
मन मेरा .. 
ये कैसा जादू है
ये कैसा प्यार है
ये कैसी ख़ुशबू है
तेरा ही आश्रय
ढूँढ़ता रहता है
जीवन मेरा... 
वो प्यार की बातें, इकरार की बातें
वो मुलाकात की बातें, इंकार की बातें
वो प्यार,वो मुलाकातें, वो चाहतें
मिलने को तड़पती आँखें, नाराजगी की बातें
सब कुछ तू ही भूल गई है 
प्रिये -
मैं तो अब भी
उन्हीं प्रेमोपहार के भ्रमजाल में
भटक रहा हूँ
तेरी जैसी कोई ना मिल सकी
तेरे जितना किसी को प्यार ना कर सका
प्रिये -
मेरे लिए तो तू
ईश्वर प्रदत्त अपूर्व रचना थी
दुर्भाग्य ही था मेरा
तुझे अपना ना बना सका मैं
तब भी तुझे प्रसन्न पाया था
अब भी तुम व्यतीत कर रही हो
सुख चैन का जीवन
प्रिये --
क्या कभी सोचा तुमने
तेरी याद में 
कितना व्यथित हूँ मैं ??
तूने मुझे कभी ना चाहा
तेरे प्यार योग्य कभी ना रहा
पर फिर भी
ऐ स्वप्न सुंदरी !!
ऐ सुनहली चिड़िया !!!
तुझे ही चाहता रहा मैं
तेरी ही कल्पनाओं में
खोया रहा मैं . . . . . . . 
                                  --- संजय स्वरुप श्रीवास्तव    

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