सभी को प्यार मैं बांटता रहा
मंजिलों तक उन्हें पहुंचता रहापर प्यार की तलाश में स्वयं भटकता रहा
बालुका प्रदेश में मंजिल तलाशता रहा
नारी-घड़ों में प्यार हेतु झांकता रहा
साथ ही असफलता पे खींझता रहा
घट रूप में तुम अपवाद लगी
हिय तलहटी में प्रेम लिए लगी
चुन-चुन समर्पण घट में डालता रहा
प्रतीक्षा प्यार उतराने की करता रहा
समर्पण चुकने का भय प्रेम को सालता रहा
अतृप्त रहने का भय हिय को बींधता रहा
सभी को प्यार मैं बांटता रहा
मंजिलों तक उन्हें पहुंचता रहा
----- संजय स्वरुप श्रीवास्तव
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