ऐसा लगता है तन मन जुदा होने का सिलसिला है ये
वीरान शहरा में गुम्ज़ुदा होने का सिलसिला है ये
तन की वसीयत लिख दी गयी है मेरी गवाही में उन्हें
तमाम मिल्कियत रकीब का होने का सिलसिला है ये
अब तो मेरे ख्वाबों में भी न आयेंगे भूले से भी
आँखों से ख्वाब जुदा होने का सिलसिला है ये
वो चाहेंगे कि उम्र भर उन्हें मैं चाहता ही रहूँ
चाहतों की रुसवाइयों का ही सिलसिला है ये
तुम तसल्ली देते हो कि मैं सिर्फ तुम्हारा हूँ
दीवाने को भरमाने का हसीं सिलसिला है ये
हम भी समझते हैं तुम मुझे कितना चाहते हो
चुप हैं, सिलसिला ज़ारी रखने का सिलसिला है ये
उन्हें अपनी ज़िन्दगी बनाने की तमन्ना है दिल में
मौत का सामाँ ज़मा करने का सिलसिला है ये
चेहरा उदास, आँखे ख़ुशी से चमकती हैं तुम्हारी
मेरी आँखों को दगा देने का कैसा सिलसिला है ये
कमबख्त मौत भी नहीं आती तेरी जुदाई में
या खुदा तेरी सितम का कैसा सिलसिला है ये
वीरान शहरा में गुम्ज़ुदा होने का सिलसिला है ये
ऐसा लगता है तन मन जुदा होने का सिलसिला है ये
--- संजय स्वरुप श्रीवास्तव
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