आधुनिक प्रेम
एक आंखमिचौनी
औरत-
चिंता में रहती है,
अपना
जीवन बीमा करने की.
पुरुष-
ढूंढता है मांसलता
औरत का
प्रेम के परदे में
----- संजय स्वरुप श्रीवास्तव
( जीवन की प्रथम कविता, ०५ जनवरी, 1984 )
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