रविवार, 30 जनवरी 2011

एक दिन ऐसा आएगा

एक दिन ऐसा आएगा
तुझे मेरे बिना मुझे तेरे बिना
जीना पड़ेगा     
व्यतीत समय के कुक्ष-आहटों को
सुन-सुन चुपके-चुपके अश्रु
बहाना पड़ेगा
जब ठेस लगेगी तुम्हें तुम्हारे पति से
मुझे मेरी पत्नी से
तब हम एक दूजे को समीप
चाहने की मनसा किया करेंगे
तू मुझे मैं तुझे बाहुपाश में लिए
सांत्वना देने की कल्पना किया करेंगे
हम दोनों ही चाहेंगे
वापस लौट आना  इन सुनहले दिवसों में
जो हमारी असीम प्रेम की दर्शक हैं
पर अपनी असमर्थता हमें
रुलाती रहेगी
एक दिन ऐसा आएगा
मुझे तेरी तुझे मेरी सूरत देखने को
तड़पना पड़ेगा
बीती शामें प्यारी-प्यारी बातें
याद आ आ कर हर पल हमें
सताया करेंगी
एक दिन ऐसा आएगा
एक दूसरे को देख हमारे अधर 
कुछ कहने के प्रयत्न में
कंपकंपाते ही रह जायेंगे
तुम्हारे होठों, कपोलों,गालों को 
चूमने की उत्कट लालसा उठेगी
दिल में
पर उन्हें जबरन कुचलना पड़ेगा
तुम्हें अपनी बाजुओं में समाने को
जी चाहेगा परन्तु मैं मात्र 
आहें ही भर सकूँगा 
एक दिन ऐसा आएगा
हम एक दूसरे की संतानों को देख
सोचा करेंगे -
ये हम दोनों से क्यों नहीं हैं
एक निशा ऐसी आएगी 
मेरा तन मेरी पत्नी से
तेरा तन तेरे पति से
गुंथा होगा परन्तु
हम दोनों के मन एक दूसरे को ढूंढ कर
गुंथ जाया करेंगे
जब मेरी पत्नी, तुम्हारे पति परिश्रान्त
सो जाया करेंगे
हम सशरीर सुदूर होते हुए भी
एक दूसरे की कल्पनाओं में 
पहुँच जाया करेंगे

एक दिन ऐसा आएगा         
तुझे मेरे बिना मुझे तेरे बिना
जीना पड़ेगा -----
                  --- संजय स्वरुप श्रीवास्तव 





1 टिप्पणी:

  1. bahut sundar rachna, mujhe bahut pasand aayi sanjay....1 premi kee mazburi bhavishya mein premika ke saamne aane par use kitne dukh de sakti hai, ka bayan dil ko chhoo lene wala hai.

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