शनिवार, 29 जनवरी 2011

वफ़ा

पल भर का भी साथ बहुत होता है          
ज़िन्दगी भर कौन साथ निभाता है 
             क्यूँ करते हो उम्मीद किसी से वफ़ा की
             वफ़ा का नाम ही यहाँ अब कौन जानता है    
क्यूँ इन हसीनाओं पे करते हो ऐतबार
खुदगर्ज़ बेवफा हैं ये ज़माना जानता है   
             चुनते रहोगे ताउम्र टुकड़े टूटे दिल के  
             इनकी शोहबत का यही नतीजा होता है
क्यों सोचते हो वो सिर्फ तेरी माशूका है
ये फक्र तमाम लोगों को हासिल होता है
             छोडो देखना ख्वाब इन्हें हमसफ़र बनाने का
             तुम्हारी किस्मत में  सिर्फ भटकना लिखा है
तू भले ही फिरे अंग-अंग में समाये मोहब्बत 
इनके सीने में दिल की जगह पत्थर होता है
             पहले उकसाना फिर तड़पता छोड़ देना
             ये तो इनकी फितरत में शामिल होता है
क्या पाओगे तुम खून-ए-दिल बहाने से
इससे तो इन्हें पुरलुत्फ हासिल होता है
             ज़िन्दगी भर कौन साथ निभाता है 
             पल भर का भी साथ बहुत होता है     
                                               --- संजय स्वरुप श्रीवास्तव          

            


         

2 टिप्‍पणियां:

  1. संजय जी बहुत सुंदर अभी अभीक्ति की है बेवफाई की

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  2. शुक्रिया रजनी जी ..... ज़िन्दगी जो कुछ भी सिखाती है उसे अपनी दोस्त इन रचनाओं के गले लग के सुना देता हूँ..........

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