गुरुवार, 27 जनवरी 2011

नारी

नारी
अब
एक अनबूझ पहेली
नहीं
कौन कहता है ?
नारी पुरुष को प्यार करती है
वो प्यार नहीं
पुरुष को बर्बाद करती है
धोखा, फरेब, बेशर्मी, बेवफाई
मिथ्या अपनत्व औ" बेहयाई
पहचान हैं
नारी के प्यार के
वो
ले जाती है
स्वप्निल प्रेम की बुलंदियों तक
ला पटकती है
हताशा-घुटन की अतल कंदराओं में
                             --- संजय स्वरुप श्रीवास्तव 

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