अश्रु आते हैं छलक जब तुम्हारी नयनों में
लगता है चुभो रहा है नश्तर कोई सीने में
अधर कंपकंपाते हैं पीने को आंसू तुम्हारी नयनों के
पर ऐसा लिखा नहीं ईश्वर ने मेरी हस्त लकीरों में
सताता हूँ तुम्हें अश्रुओं का सबब हूँ मैं तुम्हारी नयनों के
मनाता हूँ मैं मुझे भेज दे ईश्वर दूर तुमसे ज़हन्नुम में
मत बर्बाद करो आँखों को ला के इनमें आंसुओं को
आँखें ये धरोहर हैं तुम्हारे पास मेरी अमानत में
अपने ही आँचल को भिगोती रहोगी रो-रो के
रुसवाई के सिवा और क्या पाओगी रोने में
अश्रु आते हैं छलक जब तुम्हारी नयनों में
लगता है चुभो रहा है नश्तर कोई सीने में
अधर कंपकंपाते हैं पीने को आंसू तुम्हारी नयनों के
पर ऐसा लिखा नहीं ईश्वर ने मेरी हस्त लकीरों में
सताता हूँ तुम्हें अश्रुओं का सबब हूँ मैं तुम्हारी नयनों के
मनाता हूँ मैं मुझे भेज दे ईश्वर दूर तुमसे ज़हन्नुम में
मत बर्बाद करो आँखों को ला के इनमें आंसुओं को
आँखें ये धरोहर हैं तुम्हारे पास मेरी अमानत में
अपने ही आँचल को भिगोती रहोगी रो-रो के
रुसवाई के सिवा और क्या पाओगी रोने में
अश्रु आते हैं छलक जब तुम्हारी नयनों में
लगता है चुभो रहा है नश्तर कोई सीने में
----- संजय स्वरुप श्रीवास्तव
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