सोमवार, 31 जनवरी 2011

पैरोडी -१

( "चाँद सी महबूबा हो मेरी......." फ़िल्मी गीत पर आधारित )                     


बेवफा  महबूबा  हो  मेरी ऐसा मैंने कब सोचा था 
तुम बिल्कुल वैसी निकली जैसा मैंने ना सोचा था         

कहाँ वो कसमें हैं कहाँ वो शिकवे कहाँ वो दिलासे हैं 
एक  मूरत  सुरसा  की  है  दो  आँखें अनजाने से हैं
ऐसा भी रूप होगा तेरा कभी ऐसा मैंने ना सोचा था
तुम बिलकुल वैसी निकली जैसा मैंने ना सोचा था

मेरी खुशियाँ ही बांटी तूने मेरा गम बढ़ाना चाहा 
देखा ख्वाब सदा महलों का मेरा साथ ना देना चाहा
तू ऐसी निकलेगी ऐसा मैंने ख्वाबों में ना सोचा था
तुम बिल्कुल वैसी निकली जैसा मैंने ना सोचा था

अपनी  नैया  खेने को  मुझे पतवार बनाया तूने
साहिल आया तो मुझे समंदर में फेंक दिया तूने
तू ऐसा करेगी पतवार बनते  मैंने  ना सोचा था

तुम बिल्कुल वैसी निकली जैसा मैंने ना सोचा था
बेवफा महबूबा हो मेरी ऐसा मैंने कब सोचा था 
                                           --- संजय स्वरुप श्रीवास्तव 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें