शनिवार, 29 जनवरी 2011

ग़मों की बारिश

ग़मों की बारिश लगातार होती रही        
मैं रोता रहा वो देख कर हँसती रही     
           ज़ख्म  भरने  की उम्मीद में गया था मैं
           कुरेद दिया ज़ख्म उसने टीसें उठती रहीं
           बड़ी  आरज़ू  से  गया था  महफ़िल  में उसके
           शीशा-ए-दिल पे पत्थरों की बारिश होती रही
           नज़र  से  नज़र  मिलाया  था मय की उम्मीद में
           मय की जगह उदास नज़रें ख़ामोशी उड़ेलती रहीं
           हालत है क्या मेरी और क्या सहना  है
           सोच-सोच  आँखें  तन्हाई में रोती रहीं
           कोई नहीं है मेरा सब हैं बेगाने बेवफा
           जान  कर  ये  रूह मेरी सिसकती रही
मैं रोता रहा वो देख कर हँसती रही
ग़मों की बारिश लगातार होती रही       
                                    --- संजय स्वरुप श्रीवास्तव        
 
           


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