ग़मों की बारिश लगातार होती रही
मैं रोता रहा वो देख कर हँसती रही
ज़ख्म भरने की उम्मीद में गया था मैं
कुरेद दिया ज़ख्म उसने टीसें उठती रहीं
बड़ी आरज़ू से गया था महफ़िल में उसके
शीशा-ए-दिल पे पत्थरों की बारिश होती रही
नज़र से नज़र मिलाया था मय की उम्मीद में
मय की जगह उदास नज़रें ख़ामोशी उड़ेलती रहीं
हालत है क्या मेरी और क्या सहना है
सोच-सोच आँखें तन्हाई में रोती रहीं
कोई नहीं है मेरा सब हैं बेगाने बेवफा
जान कर ये रूह मेरी सिसकती रही
मैं रोता रहा वो देख कर हँसती रही
ग़मों की बारिश लगातार होती रही
--- संजय स्वरुप श्रीवास्तव
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