फिक्र क्यों करूँ मैं हर किसी का
ज़िन्दगी में दखल नहीं किसी का
मान करूँ क्यों मैं उसका
मान पाया नहीं मैंने जिसका
प्यार ही प्यार है दिल में मेरे
प्यार ही प्यार है आँचल में उसके
फिर प्यार क्यों न पा सकी वो मेरा
सामिप्य क्यों पा न सका मैं उसका
कृपणता दर्शाई जो उसने प्यार देने में
कृपण क्यों ना बनूँ मैं भी प्यार देने में
तमन्ना थी प्यार पूर दूं उसके आँचल में
वो भी प्यार बरसा दे मेरे जीवन में
पर ख्वाब तो ख्वाब ही रह जाता है
हकीकत में वो कहाँ बदलता है
हाँ कभी-कभी ऐसा भी होता है
हकीकत ख्वाब में बदल जाता है
वो ख्वाब ही थी जो ख्वाब ही रह गयी
मैं एक हकीकत हो के भी ख्वाब बन गया
--- संजय स्वरुप श्रीवास्तव
बहुत अच्छी पंक्तियाँ है
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