.लिखने की एक विशेष मानसिक स्थिति होती है, उस समय मन में कुछ ऐसी उमंग सी उठती है, ह्रदय में कुछ ऐसी स्फूर्ति सी आती है, मस्तिष्क में कुछ ऐसा आवेग सा उत्पन्न होता है कि लेख लिखना ही पड़ता है ... उस समय विषय की चिंता नहीं रहती. कोई भी विषय हो उसमें हम अपने ह्रदय के आवेग को भर ही देते हैं .... मन के भाव ही तो यथार्थ वस्तु हैं, विषय नहीं...........
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