शुक्रवार, 28 जनवरी 2011

शुभकामना

तुम्हें मिलेंगी तुम्हारे
नूतन प्रियजनों की
नूतन लच्छेदार शुभकामनायें
ढ़ेर में
मैं प्राचीन खँडहर
बेकार हो चुका हूँ
मेरी बातें असंगत
अर्थहीन हो चुकी हैं
तुम्हारे लिए
ऐसे में मैं क्या दूं क्या कहूं तुम्हे
नववर्षारंभ में
फिर
मेरे कहने
मेरे चाहने से
तुम नहीं पा सकोगे
सफलता, स्वस्थता औ' प्रसन्नता
वर्तमान वर्ष में
ऐसा होगा मात्र
तुम्हारे चाहने से
तुम्हारे प्रयत्न से             
               ------- संजय स्वरुप श्रीवास्तव



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