बुधवार, 16 मार्च 2011

याद है

याद है संग्रहालय कक्ष 
और तुम्हारा साथ
तुम मेरी बाँहों में थी 
निगाहें मेरी इधर-उधर घूमती सतर्क
बेचैन प्यासे अधरों से जब
तुमने मेरे होंठ छुए 
बिखर पड़ी थी फिजाओं में
प्यार की सौगात
दौड़ पड़ी थी शिराओं में
उत्तेजना भरी रक्तजात !
  
याद है वो चिड़ियाघर
चिड़ियाघर का वो वृक्ष
बैठे थे पास-पास
हम जिसकी जड़ों पर
बैठ गया था एक बार मैं
तुम्हारे दुपट्टे पर
डूबा हुआ था मैं
तुम्हारी निगाहों में 
भविष्य ढूँढ रहा था शायद
तुम्हारी स्याह  नयनों में
किये जा रहा था शरारत मैं
प्यार ही प्यार में !!

याद है तुमने कहा था
ये चूड़ी नहीं आप हैं
जिस तरह एक बार कहा था तुमने
मेरी आँख में ये तिल नहीं आप हैं
टूटी थी जब चूड़ी एक
मेरी भूल से
तुमने देखना चाहा था
मेरे प्यार की मात्रा
तोड़ कर चूड़ी के
छोटे-छोटे कणों से
खनक रही थीं तुम्हारी
हरी पीली लाल काँच की चूड़ियाँ 
तुम्हारे हस्त-वेग से
लिपट-लिपट जाया करती थी
तुम 
बातों ही बातों में अपने साजन से
उंगलियाँ
फिराया करती थीं तुम
मेरे बालों में
सबसे छुपके चुपके से !!

याद हैं वो सेब वो केले
खाए थे जो हमने 
काट-काट बारी-बारी
वो काफी वो चाय 
जिसकी ली थी चुस्कियाँ 
मैंने तुम्हे पिलाने के बाद 
वो आइसक्रीम 
जिसे खाया मैंने
तुम्हें खिलाने के बाद
घूमा किये हम 
हाथों में हाथें डाल कर
चुम्बन धरा किये हम
होठों पर 
लोगों की आती-जाती 
नज़रें बचा कर !!

याद है तुम्हारे भरे-भरे पाँवो में 
पायल का पहनाना  
सुन्दर-सुन्दर उँगलियों में 
बिछुआ पहनाना
और फिर
धीरे से, चुपके से
तुम्हारे पैर का अंगूठा चूसना !!
लेने के लिए
सभी प्रेमपत्र
झपटना तुम्हारा !
मेरी
हर शरारत पर
हर शरारती बात पर
"मार दूंगी"
प्यार से कहना तुम्हारा
"चुप रहिये"
कह कर शोख अदाएं
दिखाना तुम्हारा
कितना अच्छा लगा था तुम्हें
मैंने जब
चरमानंद दिया
कितना आह्लादित हुआ था मैं 
जब
कई बार के प्रयत्न से
सुगन्धित "केश" एकत्र किया !!

याद है 
महकती साँसें अपनी
फूँकी थी तुमने
मेरे चेहरे पर 
सुन कर मेरी बातें सिर तुम्हारा
आ टिकता था मेरे काँधे पर 
वो रेस्तरां की बातें
वो रिक्शे का सफ़र
उस पर
अपनी बातें कहते हम
एक दूसरे के तन-स्पर्श का 
आनंद लेते हम 
चलते-चलते
वो मेरा नोचना तुम्हें 
अपने वादों का स्मरण
कराना तुम्हें
नीले निशान बदन के
अपने
मुझे दिखाना तुम्हारा
जानवरों के बारे में
पूछने का 
याद है वो अंदाज़ तुम्हारा !!

याद है साँझ ढले तक
बैठे रहना संग-संग 
मीठी-मीठी बातें
करते रहना संग-संग !!

याद है संग्रहालय की सीढियाँ
औ' हमारे बीच नजदीकियाँ 
देर तलक जहाँ बैठे रहे हम
नारियल भूजा खाते रहे हम
पाँव का घाव दिखाया था मैंने
उसे प्यार से सहलाया था तूने
घडी पहनाई थी तुम्हें मैंने !!

वक़्त कितनी ज़ल्दी बीत गया था
हमारा प्यार कराहता रह गया था
हमारी बातें
अधूरी रह गयी थीं
हमारे दिलों की इच्छाएं
अनछुई रह गयी थीं !!

याद है
तुम चली गयी थी उधर
मैं चला आया था इधर !!

याद है
वो सब कुछ जो हमने
उन महकते दिनों में 
एक दूजे के संग
जिया-दिया-पाया !!

याद है
वो मिलन, उसकी स्मृतियाँ
जो हमें
एक दूसरे को और निकट लाया !!!!!!
                            --- संजय स्वरुप श्रीवास्तव  







9 टिप्‍पणियां:

  1. bahut sundar rachna padhne ko mili Sanjay ji... iski khasiyat ye h ki yadon mein vastvikta jhalakti hai, banavat nahi ......

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  2. होली की आपको बहुत बहुत शुभकामनाये आपका ब्लॉग देखा बहुत सुन्दर और बहुत ही विचारनीय है | बस इश्वर से कामनाये है की app इसी तरह जीवन में आगे बढते रहे | http://dineshpareek19.blogspot.com/
    http://vangaydinesh.blogspot.com/
    धन्यवाद
    दिनेश पारीक

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  3. याद है वो मिलन, उसकी स्मृतियाँ
    जो हमें एक दूसरे को और निकट लाया !!!!!!

    कवि‍ता के सहयोगी वि‍षय ने ये कवि‍ता पढ़ी तो वो भी कहेगा, कि‍ आपने दुनि‍यांभर को सारा कि‍स्‍सा सुनाया।

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  4. याद है
    वो मिलन, उसकी स्मृतियाँ
    जो हमें
    एक दूसरे को और निकट लाया !!!!!!
    बहुत ही प्यारी रचना....

    जवाब देंहटाएं
  5. याद है
    वो सब कुछ जो हमने
    उन महकते दिनों में
    एक दूजे के संग
    जिया-दिया-पाया !!

    बहुत सुंदर भाव का सम्प्रेषण और एक सुखद अनुभूति ...आपका आभार

    जवाब देंहटाएं
  6. @ केवल राम जी, भाष्कर जी, विवेक जी, वीणा जी, पारीक जी, मुकेश जी, और नागेन्द्र जी ........ रचना आप को पसंद आई ... मेरा प्रयास सफल हुआ .... ब्लॉग पर आपके आने तथा मुझे प्रोत्साहित करने के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद...

    @ राजे शा जी ....
    कभी-कभी कोई किस्सा दुनिया भर को चिल्ला कर सुनाने को मन करता है.... सुधन्यवाद

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