रविवार, 6 मार्च 2011

कथ्य- 9

गंभीर प्रकृति वाले पुरुष आग हैं -

ये जलते हैं, जलाते हैं

और

राख़ बन कर ठन्डे पड़ जाते हैं

परन्तु अंत समय तक ज़बां नहीं खोलते --

नहीं कहते कि

उनमें जलन है, ज्वाला है, तृष्णा है, अतृप्ति है  

और

उनके शमनार्थ पानी की एक बूँद

अथवा

तृप्ति की एक घूँट चाहिए .......

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें