गंभीर प्रकृति वाले पुरुष आग हैं -
ये जलते हैं, जलाते हैं
और
राख़ बन कर ठन्डे पड़ जाते हैं
परन्तु अंत समय तक ज़बां नहीं खोलते --
नहीं कहते कि
उनमें जलन है, ज्वाला है, तृष्णा है, अतृप्ति है
और
उनके शमनार्थ पानी की एक बूँद
अथवा
तृप्ति की एक घूँट चाहिए .......
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें