मंगलवार, 8 मार्च 2011

रुला गया

मुझको  मेरा  हमनशीं  रुला-रुला गया है !
अश्क-ए-जुदाई से आँखें मेरा भर गया है !!

तफरीह की खातिर जो छोड़ा शहर आपने  !
सारा  शहर  उसी दम से वीरान हो गया है !!

कैसा करिश्मा है आप की मोहब्बत का !
मुझको  मुझसे ही  जुदा  कर  गया  है !!

कहिये तो राज-ए-दिल कह दूँ आपसे !
दिल  मेरा  मिरा  साथ  छोड़  गया  है !!  

आप की जुदाई में क्या हाल है क्या कहूँ !
इक-इक पल दिल पे पत्थर रख गया है !!

आपकी हँसी आपकी आवाज़ सूरत आपकी !
सनम  इन सबको  मन मेरा  तरस  गया है !!          

अश्क-ए-जुदाई से आँखें मेरा भर गया है !
मुझको  मेरा  हमनशीं  रुला-रुला गया है !! 
                                                --- संजय स्वरुप श्रीवास्तव  

1 टिप्पणी:

  1. तफरीह की खातिर जो छोड़ा शहर आपने !
    सारा शहर उसी दम से वीरान हो गया है !!

    bahut achchhe Sanjay ji.... mahbooba k bahar jane par hue dard ko khoob bayan kiya aapne...

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