शनिवार, 5 मार्च 2011

फेयरवेल

कैसे कह दूँ तुझे अलविदा ऐ सनम 
कैसे करूँ यादें दिल से जुदा ऐ सनम      

इसी छत तले चढ़ा है परवान प्यार मेरा  
कैसे भुला सकूँगा इस छत को ऐ सनम 

जीते जी कैसे करे अलग दिल कोई   
सुकून ना पा सकूँगा कभी ऐ सनम   

दिल छलनी हुआ जा रहा हैं सत्रावसान से 
जाने क्या तू सोचती होगी आज ऐ सनम   

ये बरामदा ये रूम तुझे मेरी याद दिलाएंगे 
तू जब कभी यहाँ आएगी जाएगी ऐ सनम 

जब भी देखोगी सनद तुम बी०एड० की
तेरे ख्यालों में मैं चला आऊंगा ऐ सनम 

आँखों-आँखों में किये हैं जो बातें हमने   
बताओ क्या उन्हें भूल जाओगी ऐ सनम    

तुझे ऐतबार ही नहीं मेरे पाकीज़ा प्यार पे  
जुबान कांपती है कुछ कहने से ऐ सनम 

कुछ नहीं चाहता विश्वास के सिवा दीवाना     
चाहत वफ़ा प्यार सब तेरे लिए हैं ऐ सनम    

ये और बात है तुझे नहीं है प्यार मुझसे   
जर्रा-ए-बदन  में तू ही बसी है ऐ सनम 

शायद आम बातें हों ये  तेरी नज़रों में    
मैंने तो तेरी ही आरज़ू की है  ऐ सनम 

कैसे करूँ यादें दिल से जुदा ऐ सनम 
कैसे कह दूँ तुझे अलविदा ऐ सनम 
                                 --- संजय स्वरुप श्रीवास्तव   

1 टिप्पणी:

  1. जब भी देखोगी सनद तुम बी०एड० की
    तेरे ख्यालों में मैं चला आऊंगा ऐ सनम

    आँखों-आँखों में किये हैं जो बातें हमने
    बताओ क्या उन्हें भूल जाओगी ऐ सनम

    college ko chhodte tym dil ko kitni taklif hoti hai...ise bakhubi bayan kiya gaya h.... badhai ho

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