बुधवार, 9 मार्च 2011

जाने कहाँ

जाने  कहाँ  चली  गई  नींद आँखों से !
आज छिन गया ख्वाब भी पलकों से!!

फ़क़त चार दिन तो हुए हैं आप को गए हुए !
यूँ लगता है आपसे बिछुड़े हैं हम बरसों से !!

जाने  क्या हो गया है मेरे दिल को !
बहलता नहीं आपकी तस्वीरों से !!

आप तो चली जाती हैं मुझे तनहा छोड़ ! 
पूछिए हाल  मेरा मेरे तड़पते  रोओं  से !!

होंगी आप खूब गहरी नींद में इस वक़्त !
मैं बहला रहा हूँ दिल अपनी अशआरों से !!   

आज छिन गया ख्वाब भी पलकों से!!
जाने  कहाँ  चली  गई  नींद आँखों से !
                                     --- संजय स्वरुप श्रीवास्तव  

5 टिप्‍पणियां:

  1. आप के पास भाव वियक्त करने को शब्द है ........इश्वर की आप पर किर्पा है

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  2. आप के पास भाव वियक्त करने को शब्द है ........इश्वर की आप पर किर्पा है

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  3. वाह... उत्कृष्ट, भावपूर्ण रचना के लिए बहुत बहुत आभार।

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  4. @ रजनी जी ..... ईश्वर तथा आप को भी धन्यवाद ....

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