शनिवार, 12 मार्च 2011

मेरी नन्ही कली

एक नन्हीं सी
कली    
खिली है हमारे आँगन में
जैसे
खिल जाएँ दिशाएँ 
सावन में!

बिखेर रही है
खुशबू वो
नित-नित
हमारे जीवन में !!

मिल गयी है
एक नई दिशा
एक नई विधा
मेरी
कविता को !

"पंखुड़ी"
नाम है उसका
चंचल
स्वभाव है उसका
मासूम है वो
खूबसूरत है वो
शैतान है वो
माँ विंध्यवासिनी की
की
अनुपम वरदान है वो
हमारे जीवन की
आस है वो
बुढ़ापे की प्रकाश
है वो
हमारे प्रेम की
स्मृति है वो

कर लेती है मनमुग्ध
बिखेरती है जब
मुस्कान धवल-दुग्ध 
उसकी मासूम उपस्थिति 
रोक लेती है
हमारी वाक्-युद्ध

एक पुलिया है वो
हमारे दाम्पत्य जीवन की
एक तार है वो
हमारे जीवन-वीणा की
एक उद्देश्य है वो
हमारे जीवन की
रस है वो
हमारे जीवन-पौध की 
दूर हो जाती है
देख कर उसे
थकान दीर्घ यात्रा की
दूरस्थ हो कर होती है
प्रतीक्षा 
मिलने की एक "पारी" की

पहुँचता हूँ
जब भी मैं उसके पास
जहाँ भी हो
दौड़ी चली आती है मेरे पास

होती है कितनी हर्षित
वो 
मुझे देख कर 
होता हूँ वैसा ही हर्षित
मैं
उसे अंक में ले कर

जब भी
होती है नाराज़
कह उठती है
"गन्दी-पाटी"
अभी तो
है लक्ष्मी ही उसके
बालपन की साथी
आगे तो
बहुत कुछ है उसके  
जीवन की थाटी 

जब भी करो फोन
कहती है --
"पापा आ जाओ"
देख कर ड्रेस्ड 
कहती है
"पापा,आजमगढ़ जाओ
मेरे लिए पैसा लाओ
खरीदूंगी मैं
उससे सुन्दर-सुन्दर फ्राक" 

जब करती नहीं उसकी मम्मी
काम
जमाती  है
उस पर अपनी धाक 
"मम्मी, बात नहीं सुनती हो ?
काम क्यों नहीं करती हो ?? "

लगते ही भूख
चिल्लाती है --
मम्मी गाय बुब्बू दो
रुग्ण  होने पर
नहीं खाती
एलोपैथिक दवा 
मांगती है
मीठी-मीठी दवा 

दादी-बाबा की है
दुलारी पोती
बहुधा
उनके पास है रहती

गुड्डू काकू 
से उसका रिश्ता  
खट्टा-मीठा है
साथ-साथ घूमती है
पर सामान उन्हें
अपना
छूने नहीं देती है

नाना
आह्लादित हो उठते हैं
उसे पास पा  कर
सुबह-शाम
टहल आते हैं
उसे साथ लेकर
कहानियां सुनती है
वो
उनके पास सो कर

नानी
ने कर लिया है
वश में उसे
फ्राक दे-दे कर 
टिंकू मामा
ने
रंग जमा दिया है
अपना
उस पर
"बनाना" खिला-खिला कर

एक नन्हीं सी
कली 
खिली है हमारे आँगन  में
जैसे
खिल जाएँ दिशाएँ 
सावन में !!
                   --- संजय स्वरुप श्रीवास्तव  

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर रचना....यह कली खूब महके....
    ब्लॉग जगत में स्वागत है...
    इस सुंदर रचना को पढ़कर फॉलो भी कर रही हूं...

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  2. एक नन्हीं सी
    कली
    खिली है हमारे आँगन में
    जैसे
    खिल जाएँ दिशाएँ
    सावन में !!

    bahut khoobsurat rachna bilkul sundar kali ki tarah.....

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  3. waah bahut khoob.... Sanjay ji, aap ki rachnayen mujhe is karan achchhi lagti hain ki vo jeevan ke zyada karib hoti hain....

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  4. कोमल भावों से सजी ..
    ..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती

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  5. @ वीणा जी.... इस कली को आपका आशीर्वाद मिला.... धन्यवाद... आभारी हूँ... आशीर्वाद के लिए भी और ब्लॉग फ़ॉलो करने के लिए भी ....

    @ भाष्कर जी, नागेन्द्र जी, अनवर भाई.... आभारी हूँ आप का ....

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