शुक्रवार, 11 मार्च 2011

तूने भी

आखिर तूने भी हाथ छुड़ा  लिया 
जाने क्या ऐसी मैंने खता  किया   

                   किसका सहारा लूँ ज़िन्दगी के भँवर में  
                   तूने तो मेरे हाथों से पतवार छीन लिया 

क्या रहा मकसद बताओ तो ज़रा  
जब जीवन से तूने किनारा किया 

                    क्या कहूँ कितने तनाव में हूँ मैं  
                    तूने  पागलपन का सामां किया 

जाने क्या ऐसी मैंने खता  किया 
आखिर तूने भी हाथ छुड़ा  लिया 
                                              --- संजय स्वरुप श्रीवास्तव  

3 टिप्‍पणियां:

  1. " किसका सहारा लूँ ज़िन्दगी के भँवर में
    तूने तो मेरे हाथों से पतवार छीन लिया"

    patwar hi naa raha to zindagi ki naiya kaise chalayen..... achchhi kalpana Sanjay....

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  2. बहुत अच्छी रचना है...एक संदेश दे रही है.

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  3. bhai bhashkar ji tatha anwar bhai .... rachna aap ko pasand aai... abhari hun

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