जा ऐ संगदिल तेरे बगैर भी हम जी ही लेंगे
ज़नाज़ा-ए-आरज़ू पे अश्क-ए-गम बहा लेंगे
मेरी दीवानगी की भला तुझे क्या खबर
तेरी खातिर इन्तेहा-ए-इश्क़ से गुज़र लेंगे
ना ले इम्तिहां मेरी कूबत-ए-इश्क़ की
हम दीवाने हैं तेरे ज़माने से टकरा लेंगे
भले ही न हो तू लकीर-ए-तकदीर में मेरे
देख लेना इक दिन तुझे खुदा से चुरा लेंगे
इक दिन मिलना बंद कर दो शायद मुझसे तुम
दिल को किसी तरह तेरी तस्वीर से फुसला लेंगे
ज़नाज़ा-ए-आरज़ू पे अश्क-ए-गम बहा लेंगे
जा ऐ संगदिल तेरे बगैर भी हम जी ही लेंगे
--- संजय स्वरुप श्रीवास्तव
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