खुदा तेरी दुनिया में मुझे प्यार नहीं मिलता
आखिर मुझे इक बावफा क्यूँ नहीं मिलता
यूँ तो सब कुछ मिलता है दुनियाँ में
पर ढूँढने से यहाँ वफ़ा नहीं मिलता
बहुतेरी कोशिशें कर चुका हूँ मैं पर
तिरे मिजाज़ का पता नहीं मिलता
भर रखा है उसने तो अमृत कलश
इक बूँद मुझे भी क्यूँ नहीं मिलता
देखता ही रह गया या रब मैं तो तासफ़र
उसकी आँखों में अक्श मेरा नहीं मिलता
मैं ही नहीं काबिल उस शोख के शायद
मोहब्बत इसीलिए उसका नहीं मिलता
दामन-ए-सब्र पकडे रहूँ कब तक मैं
मुझे कहीं कोई सहारा नहीं मिलता
बनाना चाहता हूँ इक आशियाना मैं भी
या खुदा तेरी दुनिया में तिनका नहीं मिलता
बनाना चाहता हूँ इक आशियाना मैं भी
या खुदा तेरी दुनिया में तिनका नहीं मिलता
आखिर मुझे इक बावफा क्यूँ नहीं मिलता
खुदा तेरी दुनिया में मुझे प्यार नहीं मिलता
--- संजय स्वरुप श्रीवास्तव
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