शनिवार, 5 मार्च 2011

क्यूँ नहीं मिलता

खुदा तेरी दुनिया में मुझे प्यार नहीं मिलता   
आखिर मुझे  इक बावफा क्यूँ  नहीं मिलता 

           यूँ तो सब कुछ मिलता है दुनियाँ में   
           पर ढूँढने  से यहाँ वफ़ा नहीं मिलता   

           बहुतेरी कोशिशें कर चुका हूँ मैं पर
           तिरे मिजाज़ का पता नहीं मिलता 

           भर रखा है उसने तो अमृत कलश   
           इक बूँद मुझे भी क्यूँ नहीं मिलता 

           देखता ही रह गया या रब मैं तो तासफ़र 
           उसकी आँखों में अक्श मेरा नहीं मिलता 

           मैं ही नहीं काबिल  उस  शोख के शायद 
           मोहब्बत इसीलिए उसका नहीं मिलता 

           दामन-ए-सब्र पकडे रहूँ कब तक मैं   
           मुझे कहीं कोई सहारा नहीं मिलता 

           बनाना  चाहता  हूँ  इक  आशियाना  मैं  भी
           या खुदा तेरी दुनिया में तिनका नहीं मिलता         

आखिर मुझे  इक बावफा क्यूँ  नहीं मिलता 
खुदा तेरी दुनिया में मुझे प्यार नहीं मिलता  
                                          --- संजय स्वरुप श्रीवास्तव   

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