इक ख़त लिख रहा हूँ हमनशीं तुझे
इश्क का पैगाम भेज रहा हूँ दिलनशीं तुझे
कितनी हसरतें मचल रही हैं मेरे दिल में
कुछ आरजुएं लिख रहा हूँ महज़बीं तुझे
पुरकैफ हवाएं टपकती बारिश की बूंदे
दिल इस बहार में ढूँढ रहा है तुझे
जाने कितने सावन गुज़ारने होंगे अभी
दिल तड़प-तड़प याद करता है तुझे
क्या कहूँ कहाँ-कहाँ तू आबाद है सनम
ख्वाबों ख्यालों मंदिरों में पाया तुझे
तू भी हैरान होती होगी मेरी दीवानगी पे
जहाँ में अपने इश्क के काबिल पाया है तुझे
तेरी जादुई आवाज़ औ गमकते खतों की बाबत
अब और कितना हाल-ए-इंतजार लिखूं तुझे
इश्क का पैगाम भेज रहा हूँ दिलनशीं तुझे
इक ख़त लिख रहा हूँ हमनशीं तुझे
--- संजय स्वरुप श्रीवास्तव
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